Wednesday, 20 October 2021
Saturday, 9 October 2021
अतीत और भविष्य को मन में पालना ही नकारात्मकता की जड़ है
अतीत और भविष्य को मन में
पालना ही नकारात्मकता की जड़ है
भविष्य, आमतौर पर अतीत की ही प्रतिकृति
या कहें कि उसका अक्स हुआ करता है। कुछ
सतही बदलाव भले ही हो जाते हों, लेकिन
वास्तविक रूपांतरण शायद ही कभी होता हो,
और वह भी इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या
आप वर्तमान में इतना विद्यमान रह सकते हैं
कि अतीत का अंत ही कर दें?
कल्पना करिए कि आप करोड़ों रुपए जीत
गए हैं, फिर आपका जीवन किस तरह बदल
जाएगा। जीवन स्थायी रूप से बदलेगा या धन
आने से वे बदलाव सतही ही होंगे? भले ही
आप अमीर हो जाएं लेकिन अपने कामधाम
उसी संस्कारग्रस्त ढरे के साथ केवल थोड़े सरल अर्थों में कहें तो हम कल्पना लोक
अधिक विलासितापूर्ण वातावरण में कर रहे जीते रहते हैं। बेचैनी, व्यग्रता, तनाव, दबाव,
होंगे। फिर सवाल है कि जीवन में वास्तविक चिंता- ये सब भय के ही रूप हैं, और जरूरत
बदलाव कैसे होंगे?
से ज्यादा भविष्य को पालने और पर्याप्त रूप
अगर आपका मन अतीत का बोझ उठाए से वर्तमान में न रहने के कारण ही ये भय
चल रहा है तो आपको वह बोझ बढ़ता हुआ पैदा होते हैं। अपराध-भाव, पश्चाताप, कुढ़न,
ही लगेगा। वर्तमान के अभाव में ही अतीत व्यथा, शिकायत, उदासी, कटुता और क्षमा न
खुद की निरंतरता बनाए रखता है। वर्तमान करने का कोई भी रूप- ये सभी जरूरत से
में चैतन्यता या जागरूकता की जैसी अवस्था ज्यादा अतीत को पालने और पर्याप्त रूप से
होगी, वैसा ही आपके भविष्य का स्वरूप वर्तमान में न रहने के कारण ही पैदा होते हैं।
होगा- जो कि, वास्तव में अब' के रूप में ही अधिकतर लोगों के लिए यह विश्वास करना
अनुभूत किया जा सकता है।
मुश्किल लगता है कि चैतन्यता की
हमारे जीवन में जितनी भी नकारात्मकता अवस्था में नकारात्मकता से पूरी तरह
है, वह मानसिक समय का संग्रह करने और मुक्त हो जाना संभव हो जाता है।
वर्तमान का परित्याग करने के कारण होती है। -एकहार्ट टॉल्ल की कितावदपावर ऑफ नाउ से साभार
Tuesday, 5 October 2021
अध्यात्म के मार्ग
अध्यात्म के मार्ग
लंबी बंदिशों के बाद अब जीवन कुछ खुला-खुला सा लगने लगा है। खुलेपन का सबसे बड़ा दृश्य दिख रहा है शिक्षण संस्थाओं के प्रांगण में। स्कूल खुल गए, उत्सव के दिन आ रहे हैं। लेकिन, हमें अब भी बहुत सावधानी बरतना होगी। बच्चों की आंखों में नए उत्साह और जोश की जो चिंगारी चमक रही है, उसे लंबे समय तक बचाए रखना है। कल से मां दुर्गा की आराधना के दिन यानी नवरात्र शुरू हो रही है। इन नौ दिनों में उत्सव चरम पर होगा और फिर दसवें दिन मारा जाएगा रावण। याद रखिएगा, भगवान श्री राम के हाथों मरने के बाद भी रावण अपना कुछ हिस्सा बचा लेता है और दुर्गुण या महामारी किसी भी शक्ल में फिर से आ सकती है। इसलिए खासकर इन दिनों घर से बाहर निकलने पर जो दुनिया दिखे, उसे बहुत सावधानी से देखिएगा और भोगिएगा। हमारे ऋषि-मुनियों ने कालखंड को बड़े अच्छे ढंग से इस तरह से बांटा है कि पितों को याद करके, शक्ति की आराधना करने के बाद हम रावण का समापन करेंगे। अध्यात्म में भी तीन मार्ग होते हैं- ज्ञान, कर्म और उपासना। ज्ञान से विचार मिलता है, कर्म से अनुभव, और उपासना से आस्था। महामारी के बाद जब दुनिया खुलने लगी है तो सामने बहुत-से रास्ते आएंगे, लेकिन यदि इन तीन मार्गों से चले, तो मंजिल आसान हो जाएगी। आने वाले नौ दिन इसी के होंगे।
आत्मबल
आत्मबल...
मिस्र
देश में एक संत हुए हैं, उनका नाम था हिलेरियो। हिलेरियो 15 वर्ष के थे तब उनके पिता का निधन हो गया। माता पहले से ही नहीं थीं। पिता उनके लिए काफी संपत्ति छोड़ गए थे। लेकिन हिलेरियो ने वह संपत्ति संबंधियों में बांट दी। स्वयं मरुभूमि में ही जीवनयापन करने का निश्चय किया जिस स्थान पर हिलेरियो ने डेटा डाला, वह स्थान समुद्र-तट से दूट घने जंगल में था। जहां डाकुओं का भय हमेशा बना रहता था। हिलेरियो के शुभचिंतकों ने उस स्थान पर न रहने का आग्रह किया। किन्तु हिलेरियो का आत्मबल बढ़ा हुआ था। वे मृत्यु से भी भयभीत होने वाले नहीं थे। जेसी कि मित्रों को आशंका थी, एक दिन कई लोग वहां एकत्रित हो गए और रोब से हिलेरियो से पूछने लगे. 'तुम इस बियावान वन में अकेले रहते हो, यदि कोई तुम्हें कष्ट पहुंचाए और तुम्हारा साज-सामान उठा कर ले जाए तो? हिलेरियो ने उत्तर दिया, जहां तक साज-सामान का प्रश्न है, मेरे पास है ही क्या। पहनने के दो कपड़े और लोटा। यदि उनकी भी आपको आवश्यकता हो, तो में अभी देने के लिए तैयार हूं।' वे फिर बोले, 'यदि कुछ डाकू, जो इन जंगलों में निवास करते हैं, तुम्हें अपने कार्य में बाधा समझकर तुम्हें मौत के घाट उतार दें तो तुम सहायता के लिए किसको पुकारोगे? ''जान से मारना चाहे तो मार दें, में सहायता के लिए किसी को नहीं पुकारूंगा। जीवन में मरना तो एक ही बार है, तो फिर जब कभी भी वह समय आ जाए उसका में हृदय से स्वागत करूंगा। 'हिलेरियो से प्रश्न करने वाले कोई सामान्य नागरिक नहीं, परिवर्तित वेश में उस क्षेत्र में रहने वाले डाकू ही थे। वे उनका उत्तर सुनकर स्तब्ध रह गए। डाकुओं का समूह वहां से चलता बना। में ये कहानी अखबार से पढ़कर आप तक पहुँचा रहा हु आप सब स्वीकार करें।।
Friday, 1 October 2021
बजरंग बली दादाजी की महिमा
उज्ज्वल ग्राम युवा शक्ति मण्डल ग्राम पंचायत बाकुड़
आज मण्डल के द्वारा किये गए सहयोग के बारे में बताने जा रहा हूं,
बारिश के दिनों की बात है मण्डल सदस्य गांव के प्राथमिक शाला बाकुड़ पौधरोपण के लिए गए थे कार्यक्रम बहुत ही अच्छे से सफल हो गया था, सब अपने अपने घर के लिए पैदल लौट रहे थे तो याद आया कि कुछ ऊर्जावान साथी अनुपस्थित है तो कारण ज्ञात हुआ कि एक भैया जो गांव से दूर नोकरी करते थे वो नशे की हालत में कार्य करते हुए बारिश मैं भीग जाने के कारण पैरालाइस हो गए है जिनको जिला अस्पताल बैतुल में भर्ती किया गया है लेकिन तबियत में कोई सुधार नहीं है, स्थिति और भिगड़ती जा रही थी तब ही फ़ोन के माध्यम से सूचना प्राप्त हुई कि जल्द से जल्द भैया को चिचोली के पास एक गांव है मंडई जहाँ बजरंग बली दादा का मंदिर है वहा लेकर जाना है ओर बारिश बहुत तेज़ थी तब हम सबने सुनिश्चित किया कि omni वेन से चलते है जो भी राशि लगेगी सभी आपस मे मिलकर वहन कर लेंगे। हम 5 से 6 साथी बैतुल के लिए निकल गए बारिश तेज़ थी जिसके कारण सफर बहुत धीरे धीरे करना पड़ा, लेकिन तब तक कुछ परिजन उनको लेकर पाडर के पास तक आ चुके थे, स्थिति को जब करीब से देखा तो पैरो तले जमीन किसक गयी थी, क्योंकि 4 लोगो ने मिलकर उनको एक गाड़ी से दूसरी गाड़ी में बैठाया था हम सब उम्मीद हार चुके थे, लेकिन जब हम सब के ये हालात थे तो परिवार के लोगो का क्या हाल हो रहा होगा सोच कर उन्हें उनकी गाड़ी से अपनी वेन में बैठा लिये जिसके बाद हम मंडई के लिए निकल गए करीब 1 से 1.30 घण्टे का सफर तय करने के बाद हम मंजिल तक पहुँचे वहाँ की दिव्यता से परे हमारे मन मे बहुत से प्रश्न ओर पेट की भूख सब थी, वहां की नियमावली बहुत ही सख़्त थी, इतना भीगा हुआ इंसान उसे स्नान कर साफ वस्त्र जो कि नए होने के बाद भी धूल कर ही पहनाने थे और वो खुदसे ये सब नही कर सकते थे और जो मदद के लिए कम से कम दो व्यक्ति चाहिये थे तो जो दो व्यक्ति मदद के लिए गए उन्होंने स्नान कर केवल ओर केवल एक पतली सी लुंगी लगा कर मदद की भोजन भी बहुत परहेज से करना था सवा महीने के लिए ये सब करना था वहा एक सराय था जहाँ रुखने की व्यवस्था थी जहाँ पहले से ही 2 से 3 शरणार्थी थे लेकिन बिजली नही थी तो बिजली की व्यवस्था की गई और यह दृश्य भावुकता परिपूर्ण था ये देख कर हम सब हैरान थे सवा महीने में बहुत सारे चमत्कार देखने को मिले और बहुत सी परीक्षा भी हुई लेकिन इन सब से परे परिणाम की चाह ने सब कुछ सही तरीके से ओर सही समय से करवा लिया।
बजरंग बली दादा जी की दिव्यता इतनी बड़ी देखने को मिली कि हम सब उम्मीद हारने के बाद उस व्यक्ति को आज वापस से हँसते मुस्कुराते हुए कार्य करते देख रहे हैं।।
यह घटना के साक्षी हम मण्डल के सभी सदस्य है।।
सब प्रभु की माया है कहीं धूप कहि छाया हैं।।
#krashankant social worker🙏