Monday, 3 July 2023

फिक्र करता हूँ

कभी कभी 
मैं बहुत फिक्र करता हूँ 
तुम्हारी। 

फिर मैं रुक कर
जाँच करता हूँ अपने फिक्र की-
कि
कहीं फिक्र के शक्ल में
मैं तुम्हें दबाना तो नहीं चाहता। 

मैं पितृसत्ता वाले समाज में
बड़ा हुआ हूँ-
इसलिए खुद को हमेशा 
शक के घेरे में रखता हूँ। 

अपने उस राक्षस को साध रखता हूँ,
जो तुम्हें बांध मेरी औरत बना देना चाहता है। 

तुम्हारी आज़ादी पर मेरा 
कोई हक़ न हो-
मेरे फिक्र की हरदम 
इसलिए जांच हो।

कुछ भी हूँ तुम्हारा
आखिर
तुम्हारे स्वयं से ज्यादा नहीं हूँ मैं।।




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